About Me

Author

मेरे पेज पर स्वागत है! मेरा नाम कुमार प्रिंस है और मैं वीर रस, प्रेम रस की कविताएं लिखता हूं । नीचे आप प्रत्येक व्यक्तिगत कविताओं के बारे में अधिक जानकारी के लिए मेरे ऑडियंस के साथ-साथ मेरे सोशल मीडिया के लिंक पा सकते हैं। 

प्रकृति और महामारी

 

अस्वस्थ धरा की धाराशाही ,होनी की अब बारी थी ।

ओजोन रूपी अंग वस्त्र फटा , छेदों की गिनती भारी थी।

प्रदूषण का रूद्र रूप ,असाध्य रोगों को लाई थी ,

प्राण वायु विषयुक्त हुआ , ध्रुव के वर्फ़ो की बारी थी। 

ऐसे में एक महामारी ,विश्व समस्या लाता है ,

कहर करोना कातिल का ये कब्रगाह भर देता है,

शमशानो की अग्नि में , ये विश्व झुलस सा जाता है।

संसाधन से लिप्त मनुज को,सभ्य का पाठ पढ़ाता है,

हर घंटे हाथ, पैर, मुँह साबुन से धुलवाता है।

लोगो से लोगो की दुरी , बस दो गज ही तो बढ़ाता है ।

तब सरकारी आदेशों से एक नम्र निवेदन आता है 

सुरक्षा सम्बधित नियमो का ,मंत्र दिया जाता है।

नियमो के आदि मानव ,मंत्रो को कैसे माने ,

मंत्रो को करते तार-तार , समस्या को हल्का जाने ।

कहर करोना का विराट जब देख सिंहासन हिलती है,

तब सरकारी आदेशों से संपूर्ण लॉक डाउन आती है।

अब मन्त्र नहीं नियम है ये,पालन पुलिस करवायेगी, 

नियमो को खण्डित देख , प्रशासन लाठी बरसाएगी।

है प्रकृर्ति का अभिनय ये, वो स्वयं सवारती सजती है

आपने फटे ओजोन वस्त्रो को ,कैसे खुद से सिलती है।

प्रदूषण पारा गिरा , और प्राण वायु विष मुक्त हुआ ।

                                                 - प्रिंस

कुछ पूछना था आपसे...

  यु भावनों में बहना , विपदा को हस के सहना 

वो माँ की जैसी ममता , वो पिता जैसा त्याग।

कोमल थी काया मोम सी, पर आत्म शक्ति गहरी,

चेहरा था जैसा चाँद हो, थी ओज आके ठहरी ।

थे राम आप मेरा , सेवक हु मैं आज भी ,

लगता है आप साथ हो , बारह मास बाद भी । 

धरती पे धक से गिरना , गिरके खुद सवरना

चोटो की बात पर , बस थोड़ा सा है , कहना 

मुझे अब समझ में आया , वो प्रेम था धरा का,

जो बार बार आपको , चाहा गले लगाना ।

कुछ पूछना था आपसे....

देकर पड़ परिंदे सा , मुझे उड़ना भी सिखाया

खुद के पंखों को कभी , फिर क्यों न फैलाया?

 वो उत्सव के दिन हजार रूपए देना, 

और चुपके से कानो में फिर यह कह देना,की और घटे तो लेना की और घटे तो लेना ..

है याद जब भी आती रातो का साथ खाना वो वार्ता पूराना

 बिन मेरे मांगे ही , जरूरतों को जान जाना....

बेवक़्त का वो वियोग था, बिन वायु की वो आंधी 

बिन बादल बरसात , जैसे ताप के बिन अग्नि।

धर से पानी सरका, तब रक्त बिन दिल धड़का .......

Amenities

24/7 availability
Spoken languages:
Hindi

Testimonials

मैं अपनी 13वी कविता "गाँव की ओर" बहुत जल्द आपने ब्लॉग पर प्रकाशित करने वाला हु। मैं इस कविता के माध्यम से वैसे लोग जो किसी कारण आपने गाँव से अलग किसी शहर में रह रहे , वो लंबे समय से आपने मिटटी से अलग हैं उन्हें अपनी मिट्टी की यादें दिलाना चाहता हु। उम्मीद है आपको पसंद आएगी। 

गाँव की ओर
20 May 2020

. Bandh 

गाँव की और
21 May 2020

Send a Message

An email will be sent to the owner