जीवन की पहली सीढ़ी
जीवन की पहली सीढ़ी पर, ना नाम बड़ा पहचान बरा। खोन कोे ना है कुछ भी बड़ा ,पाने को है अब ललक जगा।
खोने से हमको याद आया पाया क्या हमने अभी बरा।
पथ पर जब मैं ...जब आता हूं ,पथ बना तंत्र डाली जैसा है।
है हर डाली फल फूल लगा ,पर यह समझ ना आता है
किस डाली का फल मीठा है ....,है किस डाली का पुष्प खिला।
जीवन की पहली सीढ़ी पर ना नाम बड़ा पहचान बड़ा
यू नभ में है तारे बहुत ,ना धरती पर है नदियां कम
हर तारे ध्रुव ना कहलाते ,हर नदियां ना गंगा होती ।
है..सिखलाता नदिया हमको छन राह चुने हम कैसे है। है..सिखलाता ज्योति हमको जलकर कैसे प्रकाश बने।
और यही हमें सिखलाता है जीवन है सुख दुख का संगम ।
जीवन की पहली सीढ़ी पर ना नाम बड़ा पहचान बड़ा, अब तक करता था मैं अभिनय पर सच तुम्हें बतलाता हूं ।
ना करुर भरा मेरे अंदर ,ना सख्त छवि मुझको भाता ।
हे मित्र मुझे हसमुख कहता.. मैं हंसता और हंसाता हूं जीवन की पहली सीढ़ी पर ना नाम बड़ा पहचान बरा।
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- कुमार प्रिंस